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ओल चिकी: संताली भाषा की शुद्धता और सांस्कृतिक पहचान की रक्षक

ओल चिकी: संताली भाषा की शुद्धता और सांस्कृतिक पहचान की रक्षक


"संताली भाषा की मानक लिपि ओल चिकी (Ol Chiki) है। इसे संताली भाषा के लिए विशेष रूप से 1925 में पंडित रघुनाथ मुर्मू द्वारा विकसित किया गया था। ओल चिकी एक स्वतंत्र लिपि है जो संताली भाषा की ध्वनियों और व्याकरण को सटीक रूप से व्यक्त करने के लिए बनाई गई है। इसमें 30 मूल अक्षर हैं, जो संताली की ध्वन्यात्मक विशेषताओं को प्रभावी ढंग से दर्शाते हैं। 

क्या इससे शुद्ध लिखा जा सकता है? 
हाँ, ओल चिकी से संताली को शुद्ध और सटीक रूप से लिखा जा सकता है, क्योंकि यह लिपि संताली भाषा की ध्वनियों और शब्दावली को पूरी तरह से समाहित करने के लिए डिज़ाइन की गई है। अन्य लिपियों जैसे देवनागरी, बांग्ला, या रोमन में संताली लिखने की कोशिश करने पर कई बार ध्वनियों का सही प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता, लेकिन ओल चिकी में यह समस्या नहीं होती। यह संताली की पहचान और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति को बनाए रखने में भी मदद करती है। हालांकि, कुछ क्षेत्रों में संताली बोलने वाले लोग अभी भी देवनागरी या अन्य स्थानीय लिपियों का उपयोग करते हैं, लेकिन ओल चिकी को संताली की मानक और सबसे प्रामाणिक लिपि माना जाता है। इसे भारत सरकार ने भी 2003 में संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल संताली भाषा के लिए मान्यता दी है। हमने बहुत सटीक और विस्तृत रूप से संताली भाषा और उसकी लिपि के बारे में बताया। 

ओल चिकी संताली भाषा के लिए अधिक शुद्ध और वैज्ञानिक लिपि है, खासकर जब इसे देवनागरी से तुलना की जाए। 

आइए इसे और स्पष्ट करें:
 उच्चारण और शुद्धता: देवनागरी में संताली लिखते समय कई समस्याएँ आती हैं। उदाहरण के लिए, संताली में कुछ विशिष्ट ध्वनियाँ (जैसे मध्य स्वर या विशिष्ट व्यंजन) हैं जो देवनागरी में सही ढंग से व्यक्त नहीं हो पातीं। हमने जो उदाहरण दिए—संताली, सांताली, सानताली, आदि—ये सभी देवनागरी में लिखे जा सकते हैं, लेकिन इनका उच्चारण संताली भाषा के मूल स्वरूप से मेल नहीं खाता। इसके विपरीत, ओल चिकी में ᱥᱟᱱᱛᱟᱞᱤ (Sanṭali) एकदम शुद्ध और स्पष्ट है, क्योंकि यह लिपि संताली की ध्वनियों के लिए विशेष रूप से बनाई गई है। 

वैज्ञानिक दृष्टिकोण: ओल चिकी को एक फोनेटिक लिपि माना जाता है, जिसमें प्रत्येक अक्षर एक विशिष्ट ध्वनि को दर्शाता है। देवनागरी में एक अक्षर के कई उच्चारण हो सकते हैं (जैसे अ को आ या ऐ के संदर्भ में भ्रम हो सकता है), जो इसे संताली जैसे भाषा के लिए कम उपयुक्त बनाता है। ओल चिकी में यह अस्पष्टता नहीं है, इसलिए इसे वैज्ञानिक और संताली के लिए अधिक उपयुक्त कहा जा सकता है। देवनागरी की सीमाएँ: देवनागरी मूल रूप से संस्कृत और उससे व्युत्पन्न भाषाओं (हिन्दी, मराठी आदि) के लिए बनाई गई थी। संताली, जो ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार से संबंधित है, की ध्वनियाँ और संरचना इससे बहुत अलग है। इसलिए देवनागरी में संताली लिखना एक तरह से जबरदस्ती फिटिंग जैसा हो जाता है, जिससे अशुद्धता बढ़ती है। 

संवैधानिक मान्यता: जैसा कि हमने कहा, भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में संताली को शामिल किया गया है, और ओल चिकी को इसकी आधिकारिक लिपि के रूप में मान्यता दी गई है। यह भी एक मजबूत तर्क है कि ओल चिकी ही संताली के लिए सबसे प्रामाणिक और मानक लिपि है। 

निष्कर्ष 
यह है कि ओल चिकी न केवल संताली भाषा को शुद्ध रूप से लिखने के लिए बेहतर है, बल्कि यह उसकी सांस्कृतिक पहचान और वैज्ञानिक अभिव्यक्ति को भी संरक्षित करता है। देवनागरी, अपनी सीमाओं के कारण, संताली के लिए उतनी प्रभावी नहीं है जितनी ओल चिकी। हमारा यह कहना बिल्कुल सही है कि ᱥᱟᱱᱛᱟᱞᱤ लिखना एक बार में ही शुद्ध और सटीक है।


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