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उत्तरी छोटानागपुर में शुद्ध संताली भाषा है।


 

उत्तरी छोटानागपुर में संताली भाषा और संस्कृति का वर्णन

1. संतालों का गढ़: उत्तरी छोटानागपुर :- 

उत्तरी छोटानागपुर पठार (हजारीबाग, बोकारो, धनबाद, गिरिडीह, रामगढ़, कोडरमा और चतरा) संथाल जनजाति का वैश्विक केंद्र है। यहाँ का हजारीबाग और बोकारो न केवल संथाल आबादी का घनत्व दर्शाते हैं, बल्कि शुद्ध संताली भाषा और संस्कृति के संरक्षण में भी अग्रणी हैं। संथाल, भारत की सबसे बड़ी आदिवासी जनजातियों में से एक, अपनी अनूठी भाषा, परंपराओं और प्रकृति-केंद्रित जीवनशैली के लिए जाने जाते हैं। उत्तरी छोटानागपुर को "दुनिया के संतालों का गढ़" कहना अतिशयोक्ति नहीं है। अर्थात् यह है कि उत्तरी छोटानागपुर (हजारीबाग, बोकारो, धनबाद, गिरिडीह, रामगढ़ आदि) संथाल जनजाति और उनकी संस्कृति का इतना महत्वपूर्ण और केंद्रीय क्षेत्र है कि इसे वैश्विक स्तर पर संतालों का सबसे प्रमुख केंद्र मानना उचित और सटीक है। यह कथन इस क्षेत्र की सांस्कृतिक, भाषाई, और सामाजिक समृद्धि को रेखांकित करता है, बिना किसी अतिशयोक्ति के।

2. शुद्ध संताली भाषा

बोली: हजारीबाग और बोकारो में बोली जाने वाली संताली अपनी मूल ध्वनियों और व्याकरण के लिए शुद्ध मानी जाती है। शब्द जैसे "ᱡᱚᱦᱟᱨ" "जोहार" (नमस्ते), "ᱫᱟᱜ" "दाक्" (पानी), और "ᱦᱤᱡᱩᱜ" "हिजुक्" (आना) यहाँ प्राकृतिक रूप में प्रचलित हैं।

लिपि:

ओल चिकी: पंडित रघुनाथ मुर्मू द्वारा 1925 में विकसित ओल चिकी लिपि संताली की शुद्ध अभिव्यक्ति के लिए आदर्श है। यह संताली की ध्वनियों को सटीक रूप से व्यक्त करती है।

देवनागरी और रोमन: हजारीबाग में शिक्षा और साहित्य के लिए देवनागरी लिपि का व्यापक उपयोग होता है परन्तु संताली भाषा के लिए देवनागरी और रोमन अशुद्ध है और संताली भाषा को बिगड़ता है, जो कि संताल के लिए ओल चिकी स्थानीय समुदाय और दुनिया के संतालों के लिए सुलभ है। रोमन लिपि का उपयोग भी कुछ क्षेत्रों में प्रचलित है, विशेष रूप से डिजिटल संचार में।


शिक्षा: हजारीबाग और बोकारो के स्कूलों में संताली भाषा की पढ़ाई, विशेष रूप से देवनागरी को छोड़कर ओल चिकी में, नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ रही है।

3. सांस्कृतिक समृद्धि

पर्व: बाहा पर्व (साल वृक्ष के फूलों की पूजा), सोहराय (फसल उत्सव), और जन्म छठियार जैसे उत्सव उत्तरी छोटानागपुर में संताली भाषा और संस्कृति को जीवंत करते हैं। इनमें संताली गीत और नृत्य प्रमुख हैं।

परंपराएँ: संथालों की मांझी-परगना शासन प्रणाली और प्रकृति-पूजा की परंपराएँ हजारीबाग और बोकारो में मजबूत हैं।

साहित्य: संताली लोककथाएँ (जैसे सृष्टि की कहानियाँ) और आधुनिक लेखक, उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल के इस क्षेत्र में संताली साहित्य को समृद्ध कर रहे हैं।


4. हजारीबाग: संताली का मानक क्यों?

शुद्धता: हजारीबाग में संताली भाषा बाहरी प्रभावों से अपेक्षाकृत मुक्त है, जिससे इसकी मूल ध्वनियाँ और संरचना बरकरार हैं। यहाँ इसलिए शुद्ध है क्योंकि बंगला, उड़िया और असमिया भाषा मिक्स बोली नहीं है।

संताल परगना प्रमंडल से अच्छा उत्तरी छोटानागपुर के संताल शुद्ध संताली बोलते हैं और आसानी से समझते हैं।

सामुदायिक केंद्र: हजारीबाग और बोकारो में संथाल आबादी का घनत्व और उनकी सांस्कृतिक गतिविधियाँ इस क्षेत्र को संताली का वैश्विक केंद्र बनाती हैं।

हजारीबाग में संताली शिक्षा और साहित्यिक गतिविधियों का विकास इसे मानकीकरण के लिए उपयुक्त बनाता है। 


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